शरीर और मन निर्दोष होंगे।
तो अब आप ही इस बात का फैसला कीजिए कि जिन लोगों के किसी न किसी दिन बाल बच्चे होने की सम्भावना है क्या उनको उचित नहीं कि वे ज़रा उत्साहपूर्वक इन नियमों को सीखने की कोशिश करें?
२--सार्वजनिक कर्त्तव्य।
. यहाँ तक माँ-बाप के कर्तव्यों का विचार हुआ। अब हम सार्वजनिक कामों का विचार आरम्भ करते हैं। यहाँ पर हमें इस बात का विचार करना चाहिए कि किस तरह का ज्ञान, किस तरह की शिक्षा, आदमी को सार्वजनिक कर्तव्य करने के योग्य बनाती है। यह नहीं कहा जा सकता कि जिस ज्ञान या जिस शिक्षा की बदौलत आदमी सार्वजनिक काम करने के योग्य हो सकता है उसकी तरफ आज कल किसी का बिलकुल ही ध्यान नहीं; थोड़ा बहुत ध्यान ज़रूर है। क्योंकि इस समय मदरसों में जो विषय पढ़ाये जाते हैं उन में राजकीय और सार्वजनिक कामों से सम्बन्ध रखने वाली बातें, यदि बहुत नहीं तो नाम के लिए, कुछ अवश्य रहती हैं। इन में सिर्फ एक इतिहास ही ऐसा विषय है जिस का दर्जा इस सम्बन्ध में कुछ बड़ा है।