परन्तु, इशारे के तौर पर जैसा हम पहले ही कह चुके हैं, जिस तरह की इतिहास-शिक्षा आजकल मिलती है, वह बहुत कर के किसी काम की नहीं। वह पथदर्शक नहीं। उस से उचित शिक्षा नहीं मिलती। इतिहास की जो किताबें जारी हैं, उनकी बात तो कुछ पूछिए ही नहीं। राजकीय विषयों से सम्बन्ध रखने वाली बातों के सही सही सिद्धान्त शायद ही एक आध कहीं उन में पाये जाते हैं। उनकी बात जाने दीजिए; बड़ी उम्र के समझदार आदमियों के लिए जो इतिहास की किताबें खूब परिश्रम पूर्वक लिखी गई हैं उन तक में इन सिद्धान्तों का बहुत कम पता मिलता है। लड़के मदरसे में बहुत करके पढ़ते क्या हैं, राजों और बादशाहों के जीवन-चरित। भला उन से समाज शास्त्र का ज्ञान कैसे हो सकता है? उनमें सामाजिक बातें बहुत ही कम रहती हैं। कहीं कोई कपट-काण्ड रच रहा है, कहीं कोई कूट-नीति का जाल बिछा रहा है; कहीं कोई किसी का राज्य छीन रहा है, कहीं कुछ हो रहा है, कहीं कुछ। यही सब बातें उनमें रहती हैं। इन्हीं बातों को लड़के सीखते हैं और जिन जिन का सम्बन्ध इन से होता है उन का नाम याद करते हैं। इन बातों से देश के उत्कर्ष के कारण समझ में नहीं आ सकते। ये बातें जातीय उन्नति के कारण जानने में बहुत ही कम मदद देती
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