दूसरी मनुष्य-गणना १८९१ ईसवी की २६ वीं फरवरी को हुई। इस बार के नियम प्रायः पहले ही के नियमों के सदृश थे। भेद केवल इतना ही था कि इस बार का प्रबन्ध पहले के प्रबन्ध से अच्छा था और इस बार की गणना में काश्मीर सिकिम और ऊपरी बङ्गदेश भी शामिल किया गया था।
१ मार्च १९०१ ईसवी को भारत की तीसरी मनुष्य-गणना हुई। उस समय बलूचिस्तान एजेंसी राजपूताने में भीलों की बस्तियाँ, अण्डमान तथा नीकोवर के टापू, बंगदेश, पञ्जाब तथा काश्मीर की सीमा के अन्तर्गत प्रदेशों के मनुष्यों की भी गिनती हुई।
इस साल गत १० वीं मार्च की रात को जो मनुष्य-गणना हुई थी वह चौथी मनुष्य गणना है। इस मनुष्य-गणना में पहली गणनाओं की अपेक्षा उत्तमतर व्यवस्था की गई थी। कमिश्नर, सुपरिटेन्डेन्ट, सुपरवाइज़र इन्यूमरेटर आदि सब मिलाकर कोई बीस लाख आदमियों द्वारा इस वर्ष की मनुष्य-गणना का कार्य सम्पन्न हुआ है।
इंगलैंड आदि देशों में जहाँ विद्या का अधिक प्रचार है, प्रत्येक परिवार का स्वामी मनुष्य गणना के काग़ज़ात अपने हाथ से लिखता है। इसी से गणना करने वालों को कुछ दिक्कत नहीं होती। परन्तु हमारा देश अविद्या के अन्ध-