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जंगली हाथियों को पकड़ने के लिए जो चढ़ाई की जाती है उसे खेदा कहते हैं। बलरामपुर में हर पाँचवे साल खेदा होता है। बलरामपुर अवध में एक रियासत है। हिमालय की तराई का बहुतसा हिस्सा इस रियासत में शामिल है। वहाँ हाथी बहुत रहते हैं। उन्हीं को पकड़ने के लिए खेदा होता है। हर साल खेदा इसलिए नहीं होता कि ऐसा न हो बहुत हाथियों के पकड़ लिये जाने से उनका वंश ही कुछ दिनों में नष्ट हो जाय। इसीसे हर पाँचवें साल हाथियों का शिकार होता है। इस शिकारी चढाई में हाथी पकड़ कर कैद कर लिये जाते हैं, पर मारे नहीं जाते। हाँ पकड़ते समय किसी दुर्घटना के कारण यदि उनकी मौत हो जाय तो दूसरी बात है।
गत बार बलरामपुर का खेदा २५ दिसम्बर, १९०४ से १५ फरवरी, १९०५ तक हुआ। इसके पहले जो खेदा