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बलरामपुर का खेदा

हुआ था उसमें युक्तप्रान्त के भूतपूर्व छोटे लाट सर अराटोनी मैकडानल शामिल थे। इस खेदे की शोभा छोटे लाट सर जेम्स लटूश ने बढ़ाई। बलरामपुर में अनेक हाथी हैं। उनमें से जो खेदे के काम के थे वे सब हरद्वार के पास चिल्ला नामक जगह को भेज दिये गये। वहीं खेदे वालों का पड़ाव पड़ा। महाराजा बलरामपुर २१ दिसम्बर को बलरामपुर से रवाना ओर २३ को सबेरे हरद्वार स्टेशन पर पहुँचे। वहाँ से वे अपने पड़ाव पर गये। छोटे लाट भी २४ तारीख़ को आ गये। उनसे महाराजा ने पूछा कि क्या आप बड़े दिन अर्थात् २५ दिसम्बर को, खेदे पर चलना पसन्द करेंगे? आपने उत्तर दिया, हाँ।

यथा समय सब शिकारी हाथी ओर आवश्यक आदमी खेदे के लिए रवाना कर दिये गये। उनसे कहा गया कि ज्योंही जङ्गली हाथियों की ख़बर मिले, महाराजा को सूचना दी जाय। यह ख़बर दिन के एक बजे आई, फौरन बिगुल बजाया गया। सब आदमी तयार हो गये। जितने हाथी थे सब अपने अपने शिकारी सामान के साथ तैयार किये गये। ये सब फ़ोरन ही उस तरफ रवाना हुए जहाँ से दो जङ्गली हाथियों के देखे जाने की ख़बर आई थी। महाराजा और उनके साथी और मिहमान घोड़ों पर गये। सात मील चलने के बाद सबको घोड़े छोड कर हाथियों पर सवार होना पड़ा। शाम तक हाथियों की तलाश रही। पर एक भी