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पृष्ठ:प्रबन्ध पुष्पाञ्जलि.djvu/६३

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बलरामपुर का खेदा

मिला। वहीं शिकारी हाथियों ने जङ्गली हाथी को घेरा। पहले वह घेरे से निकल भागा। पर वह फिर घेरा गया। कन्हैयाबख्श, नागेन्द्रगज ओर राजमङ्गल नाम के शिकारी हाथी उस के दाहिने, बांये और सामने हुए। तब कई महावतों ने अपने हाथियों से उतर कर जङ्गली हाथी के पिछले पैरों को रस्से से बाँध दिया। यह कर के शिकारी हाथियों के ऊपर से जङ्गली हाथी के गले में फन्दे लगाये गये। फन्दे डाले जाने पर उन में कुटनी लगाई गई। कुटनी एक तरह की गाँठ का नाम है। इस तरह वह हाथी गिरफ्तार हो गया। कुछ पालतू हाथी उस के आगे, कुछ पीछे, और कुछ अगल बगल हुए। जङ्गली हाथी की गर्दन के रस्से पालतू हाथियों की गर्दन में बाँध दिये गये। इस तरह वह कैदी हाथी पड़ाव की तरफ रवाना हुआ। यदि रास्ते में वह कहों अड़ जाता था तो शिकारी हाथी उसे पीछे से अपने दंँतों की चोट से मारते थे। यह चोट आवश्यकतानुसार कड़ी या धीमी होती है। यदि हाथी चलने से इनकार करता है तो शिकारी हाथी उस पर अधिक बल पूर्वक प्रहार करते हैं। दाहिने बांये के हाथी रस्सों से भी कभी कभी उसे पीटते हैं। पर इस नये हाथी पर अधिक मार पीट करने की जरूरत नहीं हुई। जिस समय इस जङ्गली हाथी के पिछले पैरों में रस्सा बाँधा जा रहा था उस समय लाट साहब भी वहाँ