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प्रबन्ध-पुष्पाञ्जलि

में छोटी छोटी कीरें रहती हैं। इस से उस की चोट लगने से हाथी को वेदना होती है और वह बेतहाशा दौड़ने लगता है। ये मुंँगरी वाले भी अपनी अपनी मुंँगरियों को लेकर जङ्गल ही की तरफ बड़े ध्यान से देख रहे थे। जो लोग जङ्गली हाथी पर शिकारी हाथी की मदद से फन्दा डालते हैं वे फन्दैत कहलाते हैं। वे बड़े बड़े रस्से लिए हुये मुंँगरीवाले के आगे शिकारी हाथी पर बैठते हैं। वे भी अपना अपना रस्सा सँभाल कर हाथी को दौड़ाने के लिए तैयार थे। मुस्तैदी में परस्पर एक दूसरे की प्रतिस्पर्धा से भी, और लाट साहब को अपनी अपनी चालाकी दिखलाने के इरादे से भी, सब लोग जङ्गल की तरफ दौड़ लगाने के लिए एक पैर के बल खड़े थे कि एक बन्दूक की आवाज़ आई। मालूम हुआ कि कोई हाथी देख पड़ा। धारवाले अर्थात् बन्दूकची लोग, पहले ही जङ्गल में घुसते हैं। वे बन्दूकें दाग कर हाथियों को एक तरफ निकालते हैं। निकालते ही उन पर शिकारी हाथी बड़े बल विक्रम से धावा करते हैं।

पहले पहल कन्हैयाबख्श नाम के शिकारी हाथी ने एक जङ्गली हाथी को देखा। देखते ही उसने उस पर धावा किया। फिर क्या था, एक मिनट में सब हाथी वहाँ से ग़ायब हो गये। सिर्फ सवारी के हाथी रह गये। कोई तीन मील तक नरकुल का जङ्गल पार करने पर मैदान