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जङ्गली हाथी, इस देश में, अब भी बहुत पाये जाते हैं। अपने प्रान्त की रियासत बलरामपुर के जङ्गलों में भी वे स्वतन्त्रता-पूर्वक घूमा करते हैं। वे किस तरह पकड़े और पाले जाते हैं, इसका वर्णन भी इस संग्रह के एक लेख में पढ़ने को मिलेगा। उससे और कुछ नहीं तो कौतूहल की उद्दीप्ति तो अवश्य ही हो सकती है।
युद्ध के समय, युद्ध लग्न और निरपेक्ष देशों को किन किन नियमों का पालन करना पड़ता है, इसका भी वर्णन इस पुस्तक के एक लेख में पढ़ने को मिलेगा।
दौलतपुर, रायबरेली—— | महावीरप्रसाद द्विवेदी |
३ जून १९२९ |