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प्रबन्ध-पुष्पाञ्जलि

रोगी ओर घायल सैनिकों को---चाहे वे किसी दल के हो---उचित शुअपा की जाती है। जब तक वे अस्पतालों अथवा अस्पताली जहाजों में रहते हैं तब तक वे किसी दल के नहीं समझे जाते। जितने डाक्टर घायलों की सेवा के लिए नियत रहते हैं वे भी किसी पक्ष के नहीं समझे जाते। दोनों पक्ष उनकी रक्षा के लिए एक से बाध्य हैं। अस्पतालों पर भी आक्रमण नहीं किया जाता। गत रूस-जापान में जापानियों का व्यवहार अपने रूसी कैदियों के प्रति साधारणतः, और उन में से जो रोगी अथवा घायल थे उन के प्रति मुख्यतः, बहुत ही अच्छा था। यूरुप और अमेरिका वालों तक ने जी खोल कर जापान के इस सद्- व्यवहार की प्रशंसा की। जापानियों के इस सद्व्यवहार की एक घटना का यहाँ उल्लेख कर देना अनुचित न होगा। कीनलीनथेङ्ग के युद्ध में एक रूसी सैनिक की आंखें घायल हो गई। वह अपने एक साथी की सहायता से सेना के बाहर निकल आया। इतने ही में अचानक दो जापानी सैनिक घायलों को सेवा-शुभषा करने वाले सेवक समुदाय की झण्डी लिए हुए उस जगह पर पहुँचे। एक जापानी ने पिस्तोल द्वारा सङ्केत कर के घायल रूसी के साथी से चले जाने को कहा। जब वह चला गया तब दोनों ने मिल कर घायल रूसी सैनिक की आँखें धोईं, उन पर पट्टी चढ़ाई और तत्पश्चात् उसे उसके साथियों