लोगों का ख्याल था कि उत्तरी ध्रुव की जैसी दक्षिणी ध्रुव की नहीं; वहाँ जानने के लिए कुछ विशेष बातें भी नहीं। परन्तु कुछ काल से किसी किसी को दूर तक दक्षिणी ध्रुव में जाने की उत्सुकता बहुत बढ़ गई। यह तक कि कुछ जर्मन लोगों ने उस दिशा की ओर बड़े बड़े जहाजों में प्रयाण भी किया। वे अभी तक वहीं हैं, उन्होंने दक्षिणी ध्रुव का बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त किया है। उनके भ्रमण वृत्तान्त के प्रकाशित होने पर वहाँ का विशेष हाल सुनने को मिलेगा। जर्मनी वालों की देखा देखी इंँग्लैंड से भी कुछ लोग दक्षिणी ध्रुव की ओर गये हैं। इन लोगों को इंग्लैंड की रायल सोसायटी ने भेजा है। जो लोग गये हैं वे अभी तक लौटे नहीं। उनमें से डाक्टर शैकलटन बीमारी के कारण लौट आये हैं। उन्होंने लोगों के कौतूहल का निवारण करने के लिए इस चढ़ाई का संक्षिप्त वृतान्त प्रकाशित किया है। उन्हीं के वृत्तान्त के आधार पर इस दक्षिणी ध्रुव की चदाई के सम्बन्ध में हम यह लेख लिख रहे हैं।
पौराणिकों का मत है कि दक्षिण में यम का वास है; अथवा दक्षिण यम की दिशा है। इसलिए उसे वे याम्य दिशा कहते हैं। जब दक्षिण याम्य दिशा हुई तब यम-लोक भी उसी तरफ हुआ। यही कारण है जो हमने इस लेख का नाम "यमलोक का जीवन" रक्खा है।