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प्रबन्ध-पुष्पाञ्जलि

बाहर नहीं निकाल सकते थे। यदि इससे जरा भी अधिक देर लग जाय तो फौरन ही बर्फदंश हो जाय। इतना जाड़ा पड़ने पर भी मुंँह के आस पास का भाग बिलकुल खुला रखना पड़ता था। अगर खुला न रक्खा जाय, या किसी चीज़ से ढक दिया जाय, तो मुंह से निकली हुई साँस फौरन जम जाय, यहाँ तक कि उसके जमने से आँखों की बोरनियाँ चिपक जायँ। ऐसा होने से हम लोग कुछ देर के लिए अन्धे हो जाय। नंगे हाथ से हम लोग धातु की कोई चीज नहीं छू सकते थे। अगर छूते तो फौरन ही एक सफेद सफेद दाग़ पड़ जाता और उस जगह पर बर्पदंश की पीड़ा होने लगती। एक दिल्लगी सुनिए। एक टीन में कोई चीज़ रक्खी थी। वह टीन बर्फ के ऊपर पड़ी थी। उसे हमारे एक कुते ने देखा और जबान को भीतर डालकर उसे वह चाटने लगा। बस दो तीन दफे जबान लगाने की देर थी कि वह वहीं चिपक गई। कुत्ता बेचारा चीखने और दर्द से बेकरार होने लगा। यह तमाशा एक खलासी ने देखा। वह वहाँ दौड़ा गया। बलपूर्वक उसने उस टीन को कुत्ते की जबान से अलग किया।

जोर से जाड़ा परने के पहले हम लोगों ने अपनी छोटी छोटी बेपहिये की गाड़िगों में कुत्ते जोते और जहाज से कुछ दूर आगे का सफ़र करना विचारा। हम लोग रवाना हुए। बारह घण्टे तक हम बाहर रहे। इस बीच में बर्फ का