पृष्ठ:प्रबन्ध पुष्पाञ्जलि.djvu/९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८५
यमलोक का जीवन

लेखनी ही समर्थ हो सकती है।

ध्रुव-प्रदेश की रात एक ऐसी वस्तु है जिसकी समता संसार की और किसी वस्तु से नहीं की जा सकती। वह सर्वथा अनुपमेय है। वह कैसी होती है, यह जानने के लिये उसे आँख ही से देखना चाहिए। लिखने या बतलाने से उसका जरा भी अनुमान नहीं हो सकता। ज्योंही रात हुई और शीत बड़ा त्योंही हम लोगों ने सरबूर के कोट बूट और टोपियाँ वगैरह निकालीं। मोटे मोटे नीले कोटों के ऊपर हमने शीतल हवा से बचने के लिए, एक विशेष तरह का "ओवर कोट" भी पहना। बर्फदंश एक प्रकार का रोग होता है। उसके होने का हम लोगों को पल पल पर डर मालूम होने लगा। हम लोग एक दूसरे के मुंँह की तरफ देखने लगे कि कहीं बर्फदंश के चिन्ह तो नहीं दिखाई देते। जिसे बर्फदंश होता है उसे ऐसा जान पड़ता है कि बर्र ने डड़क् मारा। जिसे इस तरह का दंश हाता था वह फौरन अपना दस्ताना उतार कर उस जगह को देर तक रगड़ता था। ऐसा करने से पीड़ा कम हो जाती है और विशेष विकार नहीं बढ़ता। परन्तु यदि ऐसा न किया जाय तो उस जगह मांस के गल जाने का डर रहता है।

यहाँ पर बहुत सख्त जाड़ा पड़ता है। जाड़े का अनुमान करने के लिए हम यह लिख देना चाहते हैं कि हम लोग २ या ३ मिनट से अधिक अपने हाथो को दस्ताने के