कुत्ते ले गये होते। एक एक कुत्ता सवा मन के क़रीब बोझ
से लदी हुई गाड़ी खींचता था। इन कुत्तों में कुछ कुत्तियाँ
भी थीं। जाड़े में उनमें ९ पिल्ले पैदा हुए। परन्तु वे
बहुत छोटे हुए। वे अपने माँ-बाप के न तो डील-डोल में
बराबर हुए और न बल में।
हमारे साथ एक बिल्ली भी थी। एक दफे रात को हमारे झोंपड़े के ऊपर वह गई। वहाँ वह कुछ अधिक देर तक रही। जब वह भीतर आई तब हम लोगों ने देखा कि उसका एक कान ही नदारद है। अगर ज़रा देर वह और वहाँ रहती तो शायद वह वहाँ से ज़िन्दा न लौटती।
आठ बजे सुबह हम लोग भोजन करते थे। खाने की
सामग्री में हलवा, सील मलत्री का गोदत, रोटी, मक्खन,
मुरब्बा, चाय और कहवा मुख्य चीज़ें थीं। ९ बजे ईश्वर
की प्रार्थना होती थी। प्रार्थना-पाठ जहाज का कप्तान करता
था। फिर सब आदमी अपने अपने काम में लग जाते थे। कुछ
आदमी सोने के वास्ते थैलियाँ सींते थे। इन्हीं थैलियों
के भीतर हम लोग रात को घुपे रहते थे। कुछ उन
थैलियों की, ओर दूसरे कपड़ों की मरम्मत करते थे; कुछ
जहाज के ऊपर ज़मे हुए बर्फ को साफ करते थे, कुछ जहाज
पर पड़े हुए मोम-कपड़े को मरम्मत करते थे, क्योंकि बर्फ
के गिरने से उसमें सैकड़ों छेद हो जाते थे। कुछ आदमी
सील मछलियों और चिड़ियों की खाल खींच कर उनमें