पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/१०८

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केरो। वा रजनी औरहु सुन्दर अति लखात आगमन सुसन्ध्या तापर शात विहगम-सग मनोहर रजनी हेरो॥ इन्दु वला परिवेष्ठित तारा - निकर व्याम-मुक्ता - सम । पै रजनी राज्य माहि नहिं वायु प्रभात मनोरम ॥ नाहि विहगम क्लरव, नाहिं सुवाल दिवावर किरनें। नहिं अरविन्द-विकास-महित नव ओसणा की झरने ॥ ये मिलि करत अराम संग ये नाही। शोभत अपने मो, शुचि रजनो माही॥ चित्राधार॥ ४३॥ सव सहचर हैं चद्रकला या