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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/१०७

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शारदीय शोभा प्रभात विलसत मधुर समीर प्रवास, मानहुँ प्रभात यो सोरो। क्लरव मधुर विहग-संग, परि मुदित परत चित धोरो ।। औरहु मधुर दिवाकर, करहिं पसारत जब निजु सुन्दर । अलिकुल - मिपित सरोरह- गन को पीत करत सुमनोहर ॥ जलवण - भूपित शस्यश्यामला धरनी तर सुमन सौरभित शिखर बनाली, जल-लहरी पर सीरो।। पूरा। प्रसाद वाङ्गमय ॥४२॥