पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/१३०

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सुमन देखि खिले खिल जात हो । अलिन मे तुरतै मिल जात हौ ।। कलिन खोलत हो रस रीति सो। पर न गूजत हो नव नीति सो॥ चित्राधार ॥६७॥