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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/१७२

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प्रथम दृश्य ( सरयू में नाव पर जल विहार करते हुए महाराज हरिश्च द्र का सहबर-जना सहित प्रवेश) हरिश्चद्र सान्ध्य नीलिमा फैल रही है, प्रान्त म सरिता के । निमल विधु विम्व विकास है, नभ मे घोरे-धीरे है चढ रहा है, प्रवृति सजाती आगत-पतिसरा रूप को। मल्यानिल-ताडित लहरो मे प्रेम मे जल मे ये शैवाल जाल हैं यूमते । हरे शालि ये सेत पुलिन मे रम्य हैं सुन्दर बने तरङ्गायित ये सिन्धु से, एहराते जर वे मास्त-वा झूम के। जल मे उठती लहर बुलाती नाव को, जो आती हैं उस पर सी नाचती। अहा मिल रही विमल चांदनी भी भलो। सारागण भी उम मस्तानी चाल यो देय रहे है, चलती जिममे नाव है। काय ॥१०७॥