पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/१७९

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तृतीय दृश्य ( अजीगत वे कुटीर में अजीगत और तारिणी) अजीगत प्रिये। एक भी पशु न रहे अव पास मे, तीन पुन , भोजन का कौन प्रवन्ध हो? यह अरण्य भी फल से खाली हो गया, केवल सूखी डाल, पात फेले, अहो नव वसन्त मे जब वह कुसुमित था हुआ, तब तो अलि, शुक और सारिका नीड मे कोमल कलरव सदा किया करते । अहो जहा फैल कर लता चरण को चूमती कोमल किसलय अधर मधुर से प्रेम से, अब सूखे काँटे गडते हैं, हा 1 वही कानन की हरियाली ही सब भूख को तुरत मिटाती थी देकर फल-फूल ही प्रसाद वाङ्गमय ॥११४॥ 1