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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/१९०

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' यह जो रोहित को वलि देते तो नहीं वह बलि लेता, किन्तु मना करता इन्हे । क्योकि अधम है क्रूर आसुरी यह क्रिया यह न आर्य पथ दुस्तर अपराध है वह प्रकाशमय देव, न देता दुख है। अस्तु, सभी तुम शक्तिहीन हो हो गये। कहता हूँ उसको सुन लो सब ध्यान से, समस्वर से मव करो स्तवन, उस देव का जो परिपालक है इस पूरे विश्व का। तुममे जर हो शक्ति और यह पुन भी शुन शेफ हो मुक्त आप, तब जान लो यज्ञ काय्य पूरा होकर फल मिल गया। ( समवेत स्वर से---) जय जय विश्व के आधार । अगम महिमा सिन्धु-सी है कोन पावै पार । जो प्रसव करता जगत को, तेज का आकार । उसी के शुभ-ज्योति से हो सत्य पथ निर्धार । छुटे सब यह विश्व-बन्धन हो प्रसन उदार । विश्व प्राणी प्राण मे हो व्याप्त विगत विकार । -जय जय विश्व के आधार ।। (आलोक के माय वीणा ध्वनि । शुन शेफ का व धन आप-मे-आप सुर र जाता ह और सब शक्तिमान होरर खडे हो जाते ह । पुष्प-वष्टि हाती है । ) + आलोक के साथ पटाक्षेप परुषालय ॥ १२५॥