आफ्रिका मे गोरो वे काले कारनामे देय भुगत कर गात्री जी यहा आ चुके थे। विश्व वे अय देशा (उपनिवेशो) मे भो प्रगट अग्रेजो के वास्तविक रूप से यहा भारत का परिचित और सावधान कराने वाले कदाचित् वे पहले व्यक्ति थे । यद्यपि, तिलक और गोसले की गगा यमुना (गाधीजी के शब्दो म) भारत भूमिपर विदेशी शासन के कलुप को प्रक्षालित करने के लिये अग्रसर हो चुकी थी तद्यपि उनके समन्वय का सगम शेप रहा, जो गाधीजी के व्यक्तित्व मे भारत का उपलब्ध हुआ। नीलकोठी वाले गोरो के अतिचार, वग-भग, बलशोई क्राति से प्रेरणा प्राप्त 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आमी' की गतिविधिया, 'शहादत' की उमडती लहरे परस्पर 'घनीभूत' होने लगी। अग्रेजो ने हवा का रुख देग्य 'डोमी नियनस्टेटस' और थोडे बहुत शासकीय सुधारो का जाल फेंका जिसमे जाने अनजाने कुछ बडी मछलिया फंस गई, प्राय वे ही जो छोटी मछलियो को निगल कर जीवित रहना चाहती थी और जो 'ब्रिटिशरूल' का मगल कुछ निजी कारणो से चाहती थी कदाचित् उन्ही संस्कारो के वशवर्ती आज के अग्रेजी समथक वग हैं । उन्होने जनता का नेतृत्व करने के लिये एक सस्था बना रखी थी (काग्रेस) । बोधोन्मुखी भारतीय चेतना को नियन्त्रित रखने के लिये 'ब्रिटिश' कूट मेधा की यह सामान्य उपज थी यह तो भारत का सौभाग्य है जो इतिहास के उन क्षणा का गरल आज अमृत बन गया। किन्तु, इस सुधारवादी नेतृत्व को, जो तब शास्त्राथ से ही स्वराज्य चाहता था आगे चल कर स्वातन्त्र्य-सग्राम से पथक होना पड़ा और स्वराज्य की उसकी परिभाषा अथहीन हो गई। अब मैदान मे शस्त्रार्थी भी आ गये थे। भारतीय प्रजा एक 'आतिशी' मोर्चा बाध रही थी अब भारत पूर्ण स्व राज्य से रचमान कम की बात मोच भी नही सकता था। पहले महायुद्ध के बाद किये गये अग्रेजो की 'वादाखिलाफी' से भारत का वह अहिंसावादी नेतृत्व भी आस्था खो चुका था जो अपनी अहिंसा को 'बालाएताक' रख अग्रेजो की ओर से युद्ध करने का भारतवासियो को निर्देश दे चुका था आम-सैनिक भरती के पक्ष म बोल डोल चुका था और भारतमाता की जय बोलते उसको असस्य सन्तानो को बलि आग्लहितो की वेदो पर दे चुका था। नितराम, हिन्दुस्तान में प्रश्न उठा आत्म निणय का और उसकी भारती (भाषा) हिन्दी मे आत्माभिव्यक्ति का। यह कोई आकस्मिक सयोग नही था उभय प्रश्नो का मूल सामूहिक चेतना की सुपुप्ति और जागरण से जुडा था। 1 । प्राक्कथन ॥२१॥
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