पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२३३

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उस मलिन वसन में अगप्रभा दमकीली ज्या धूसर नभ मे चन्द्रकला चमकीली पर हाय । चन्द्र को घन ने क्या है घेरा उज्ज्वल प्रकाश के पास अजीब अँधेरा उस रस-सरवर मे क्यो चिन्ता की लहरी चचल चलती है भावभरी है गहरी कल-कमल कोश पर अहो। पड़ा क्यो पाला कैसी हाला ने किया उसे मतवाला किस धीवर ने यह जाल निराला डाला सीपी से निकली है मोती की माला उत्ताल तरग पयोनिधि मे खिलती है पतली मृणालवाली नलिनी हिलती है नहिं वेग-सहित नलिनी को पवन हिलाओ प्यारे मधुकर से उसको नेक मिलाओ नव चद अमद प्रकाश लहे मतवाली खिलती है, उसको करने दो मनवाली प्रसाद वाङ्गमय ॥१७२॥