सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कोकिल नया हृदय है, नया समय है, नया कुज है नये कमल-दल-वीच नया किंजल्क-पुज है नया तुम्हारा राग मनोहर श्रुति सुखकारी नया कण्ठ कमनीय, वाणि वीणा-अनुकारी यद्यपि है अज्ञात ध्वनि कोकिल। तेरी मोदमय तो भी मन सुनकर हुआ शीतल, शात, विनोदमय विकसे नवल रसाल मिले मदमाते मधुकर आलबाल मकरन्द विन्दु से भरे मनोहर मजु मलय हिल्लोल हिलाता है डाली को मीठे फल के लिये बुलाता जो माली को बैठे किसलय-पुज मे उसके ही अनुराग से कोकिल क्या तुम गा रहे, अहा रसीले राग से कुमुद वन्धु उल्लास सहित है नभ मे आया बहुत पूर्व से दौडा था, अब अवमर पाया रुका हुआ है गगन-बीच इस अभिलापा से ले निकाल कुछ अथ तुम्हारी नव भाषा से गाओ नव उत्साह से, रुको न पल भर के लिये कोकिल । मलयज पवन मे भरने को स्वर के लिये प्रसाद वाङ्गमय । १७८॥