पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२३८

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बाल-क्रीड़ा - हँसते हो तो हंसो खूब, पर लोट न जाओ हँसते-हँसते आखो से मत अश्रु वहामो ऐसी क्या है वात? नही जो मुनते मेरी मिली तुम्हे क्या कहो कही आनंद की ढेरी ये गोरे-गोरे गाल हैं लाल हुए अति मोद से क्या क्रीडा करता है हृदय किसी स्वतन विनोद से उपवन के फल फूल तुम्हारा मार्ग देखते काँटे ऊँचे नही तुम्हे है एक लेखते मिलने को उनसे तुम दौडे ही जाते हो इसमे कुछ आनन्द अनोखा पा जाते हो माली बूढा बकबक किया करता है, कुछ बस नही जव तुमने कुछ भी हँस दिया, क्रोध मादि सब कुछ नहीं राजा हो या रक एक ही सा तुमको है स्नेह-योग्य है वही हसाता जो तुमको है मान तुम्हारा महामानियो से भारी है मनोनीत जो बात हुई तो सुखकारी है वृद्धो की गल्पकथा भी होती जब प्रारम्भ है कुछ सुना नहीं तो भी तुरत हँसने का आरम्भ है कानन कुसुम ॥ १७७ १२