पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२४६

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उसे किसी से कुछ न द्वेष है, मोह भी नही उपर-खण्ड से टकराने का भाव नही है पकिल या फेनिल होना भी नही जानती पण कुटीरो को न बहाती भरी वैग से क्षीणस्रोत भी नही हुई सर ग्रीष्म-ताप से गजन भी है नही, कही उत्पात नही है कामल कल-कलनाद हो रहा शान्ति-गीत सा कब यह जीवन स्रोत मधुर ऐसा ही होगा हृदय-कुमुद कब सौरभ से या विकसित होकर पूण करेगा अपने परिमल से दिगत को शाति, चित्त का अपने शीतल लहरो से कब शात करेगी हर लेगी कब दुस पिपासा कानन कुसुम ॥१८५॥