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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२८८

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- समर्पण हृदय ही तुम्हे दान कर दिया। क्षुद्र था, उसने गव किया॥ तुम्हे पाया अगाध गम्भीर। क्हा जल विन्दु, कहाँ निधि क्षीर ॥ हमारा कहो न अव क्या रहा तुम्हारा सब कर का हो रहा । तुम्हे अपण, भौ' वस्तु त्वदीय? छीन लो छीन ममत्व मदीय ॥ ? रा