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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३४३

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सुधा मे गरल सुधा मे मिला दिया क्यो गरल । पिलाया तुमने कैसा कैसा तरल ॥ मागा होकर दीन, कठ सोचने के लिए, गम झील का मोन, निदय, तुमने कर दिया ।। सुना था तुम हो सुन्दर । सरल । सुधा मे मिला दिया क्यो गरल ।। राग रञ्जित सध्या हो चली। कुमुदिनी मुकुलित हो कुछ खिली ॥ तारागण नभ प्रान्त, क्षितिज छोर मे चन्द्र था। फैला कोमल ध्वान्त, दीपक जल कर बुझ गये। हमे जाने की आज्ञा मिली। राग रञ्जित सन्ध्या हो चली ॥ प्रसाद वाङ्गमय ।।२८८।।