पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३६२

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बांधा था विधु को किसने इन काली जजीरो से मणि वाले फणियो का मुख क्यो भरा हुआ हीरो से? काली आखो मे कितनी यौवत के मद की लाली मानिक मदिरा से भर दी किसने नीलम की प्याली? तिर रही अतृप्ति जलधि में नीलम की नाव निराली कालापानी वेला सी है अञ्जन रेखा काली । अकित कर क्षितिज पटी को तूलिका बरौनी तेरी कितने घायल हृदयो की वन जाती चतुर चितेरी। कोमल कपोल पाली मे सीधी सादी स्मित रेखा जानेगा वही कुटिलता जिसने भी मे बल देखा। विद्रम सीपी सम्पुट मे मोती के दाने कैसे है हस न, शुक यह, फिर क्यो चुगने की मुद्रा ऐसे? आंसू ॥३०९॥