पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सकेत नियति का पावर तम से जीवन उलझाये जब सोती गहन गुफा मे चञ्चल लट को छिटकाये। वह ज्वालामुखी जगत की वह विश्व वेदना वाला तब भी तुम सतत अकेली जलती हो मेरी ज्वाला । इस व्यथित विश्व पत्तझड की तुम जलती हो मृदु होली हे अरुणे । सदा सुहागिनि मानवता सिर की राली। जीवन सागर मे पावन वडवानल की ज्वाला सी यह सारा कलुप जलाकर तुम जलो अनल वाला सी। जगद्वन्दो के परिणय की हे सुरभिमयी जयमाला किरणो के केसर रज से भव भर दो मेरी ज्वाला। वाला, तेरे प्रकाश मे चेतन- ससार वेदना मेरे समीप होता है पाकर कुछ परुण उजाला । उसमे घुघली छायाएँ परिचय अपना देती हैं रोदन का मूल्य चुवापर सब कुछ अपना लेती हैं। आमू ३,३२५॥