पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३८४

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तुम । अरे, वही हाँ तुम हो मेरी चिर जीवनसगिनि दुख वाले दग्ध हृदय की वेदने । अश्रुमयि रङ्गिनि । जब तुम्हे भूल जाता कुड्मल किसलय के छल मे तब कूक हूक सी वन तुम आ जाती रगस्थल मे। बतला दो अरे न हिचको क्या देखा शून्य गगन मे कितना पथ हो चल आई निजन मे। रजनी के मृदु सुख तृप्त हृदय कोने को ढंकती तमश्यामल छाया मधु स्वप्निल ताराओ की जब चलती अभिनय माया। देखा तुमने तब एक कर मानस कुमुदो का रोना शशि किरणो का हँस हँसकर मोती मकरन्द पिरोना। देखा बौने जलनिधि का शशि छूने को ललचाना वह हाहाकार फिर उठ उठ कर गिर जाना। मचाना मुंह सिये, झेलती अपनी अभिशाप ताप ज्वालाएँ देखी अतीत के युग की चिर मौन शैल मालाएँ। आँसू ॥ ३३१॥