पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३८८

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3 -- A उठ उठ री लघु लघु लोल लहर । करुणा की नव अंगराई-सी, मलयानिल की परछाई-सी, इस सूखे तट पर छिटक छहर । शीतल कोमल चिर कम्पन-सी, दुललित हठीले बचपन-सी, तू लौट कहां जाती है री- यह खेल खेल ले ठहर ठहर उठ उठ गिर गिर फिर फिर आती, नतित पद चिह्न वना जाती, सिकता की रेखायें उभार-- भर जाती अपनी तरल सिहर । तू भूल न री, पकज वन मे, जीवन के इस सूनेपन मे, ओ प्यार-पुलक से भरी ढुलक आ चूम पुलिन के विरस अधर । 1 F, लहर ॥ ३३५॥ y2