सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- .. उस दिन जब जीवन के पथ मे, छिन्न पात्र ले कम्पित कर मे, मधु भिक्षा की रदन अधर मे, इस अनजाने निकट नगर मे, आ पहुंचा था एक अकिञ्चन । उस दिन जब जीवन के पथ मे, लोगो की आँखें ललचाई, स्वय मागने को कुछ आई, मधु सरिता उफनी अकुलाई, देने को अपना सचित धन । उस दिन जब जीवन के पथ मे, पृलो ने पसुरियां गोली, आग करने स्गी ठिठोली, हृदयो ने न सम्हाली झोली, सुटने एगे विकल पागल मन । लहर ॥३४३॥