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ऐसा मधुवन उस दिन जब जीवन के पथ मे, छिन्न पात्र मे था भर आता- वह रस बरवस था न समाता, स्वय चकित सा समझ न पाता कहां छिपा था, उस दिन जब जीवन के पथ मे, मधु-मङ्गल की वर्षा होती, कांटो ने भी पहना मोती, जिसे बटोर रही थी रोती- आशा, समझ मिला अपना धन । प्रसाद वाङ्गमय ।।३४४॥