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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/४१७

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अन्तरिक्ष छिडगा कन कन निशि मे मधुर तुहिन को। मत डालो, इस एकान्त सजन म कोई कुछ बाधा जो कुछ अपने सुन्दर से हैं दे देने दो इनको। प्रसाद वाङ्गमय ॥ ३६६ ॥