पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/४१६

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अरे आ गई है भूली सी- यह मधु ऋतु दो दिन को, छोटी सी कुटिया में रच दूं, नई व्यथा साथिन को। वसुधा नीचे कपर नभ हो, नीड अलग सब से हो, झाडखण्ड के चिर पतझड मे भागो सूखे तिनको। आशा से अकुर झूलेंगे पल्लव पुलक्ति होगे, मेरे क्सिल्य का लघु भव यह, आह, खलेगा पिन को? मिहर भरी कॅपती आवेंगी मलयानिल की लहरें, चुम्बा लेकर और जगावर-- मानस नयन नलिन पो। जवा कुसुम सी उपा खिलेगी मेरी लघु प्राची मे, हमी भरे उम अरण अपर का राग रंगेगा दिन को। लहर ।।३६५॥