पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/४२१

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अन्तरिक्ष में अभी सो रही है कपा मधुबाला, अरे ग्युलो भी नहीं अभी तो प्राची की मधुशाला। सोता तारक किरन पुलक रोमावलि मलयज वात, लेते अंगडाई नीडो मे अलस विहग मृदुगात, रजनी गनी की पिसरी है म्लान कुसुम की माला, अरे भिखारी | तू चल पडता लेकर टटा प्याला । गंज उठी तेरी पुकार-'कुछ मुझको भी दे देना- कान क्न विखरा विभव दान कर अपना यश ले लेना।' दुस सुख के दोनो डग भरता वहन कर रहा गात, जीवन का दिन पथ चलने म कर देगा तू रात, तू बढ जाता अरे अस्चिन, छोड कम्ण स्वर अपना, साने वाल जग कर दसे अपने सुख का सपना । प्रसाद वाङ्गमय ।। ३७०॥