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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/४५६

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निर्वाध आत्मतुष्टि मे अन्तिम अध्याय लगा और मानवीय भाव अर्थात् श्रद्धा और मनन का समन्वय होकर प्राणी को एक नये युग की सूचना मिली । इस मन्वन्तर के प्रवत्तक मनु हुए । मनु भारतीय इतिहास के आदि पुरुष है । राम कृष्ण और बुद्ध इन्ही के वशज है । शतपथ ब्राह्मण मे उन्हे श्रद्धादेव कहा गया है, 'श्रद्धादेवो वै मनु' ( का० १ प्र०१) । भागवत मे इन्ही वैवस्वत मनु और श्रद्धा से मानवीय मृष्टि का प्रारम्भ माना गया है । "ततो मनु श्राद्धदेव सज्ञायामास भारत श्रद्धाया जनयामाम दश पुत्रान् स आत्मवान् ।" (९-१-१२ । छादोग्य उपनिषद् मे मनु और श्रद्धा की भावमूलक व्याख्या भी मिलती है । "यदा श्रद्धधाति अथ मनुते नाऽश्रद्धन् मनुते" यह कुछ निरुक्त को सो व्याख्या है। ऋग्वेद मे श्रद्धा और मनु दोना का नाम पिया की तरह मिलता है। श्रद्धा वाल सूक्त मे पायण ने श्रद्धा का परिचय देते हुए लिखा है, "कामगोवजा श्रद्धागार्षिका" । श्रद्धा कामगोन की वालिका है, इसीलिए श्रद्धा नाम के साथ उमे कामायनी भी कहा जाता है । मनु प्रथम पथ- प्रदर्शक और अग्निहोत्र प्रज्वन्ति करनेवाले तथा अन्य कई वैदिक क्यामा के नायक हैं-"मनुहवा अग्रे यज्ञेनेजे, यदनुकृत्येमा प्रजा यजन्ते" (५-१ शतपथ)। इनके मवध मे वैदिक साहित्य म बहुत-मी वार्ते विग्वरी हुई मिलती हैं, किन्तु उनका क्रम स्पष्ट नही है। जल प्लावन का वणन शतपथ ब्राह्मण के प्रथम काण्ड के पाठवें अध्याय से आरम्भ होता है, जिसमे उनकी आमुख ॥४०७॥