पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/४५८

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वे कुछ खिचे । ऋग्वेद मे इडा का कई जगह उल्लेख मिलता है। यह प्रजापति मनु की पथप्रदर्शिका मनुष्योका शासन करनेवाली कही गयी है । "इडामकृण्वन्मनुपस्य शामनीम् ' (१३१ ११ ऋग्वेद) इडा के सम्बन्ध म ऋग्वेद में कई मन मिलते ह-"सरस्वती साधयन्ती विय न इडा देवी भारती विश्वतूति तिस्रो देवी स्वधयावहिरेदमच्छिद्र पान्तु शरण निपद्य ।" (ऋग्वेद-२-३- ८) "आनो यज्ञ भारतीतूयमेत्विडा मनुष्वदिह चेतयन्ती । तिस्रो देवीवहिरेद स्योन सरस्वती स्वपस सदन्तु ।" ऋग्वेद-१०-११० -८) इन मनो मे मध्यमा, वैखरी और पश्यन्ती की प्रतिनिधि भारती, सरस्वती के साथ इडा का नाम आया है । लौकिन सस्कृत मे इडा शब्द पृथ्वी अर्थात् बुद्धि, वाणी आदि का पयायवाची है । गो भू वाचस्त्विडा इला'। ( अमर ) इम इडा या वाक् के साथ मनु या मन के एक और विवाद का भी शतपथ म उल्लेख मिलता है जिसम दोना अपने महत्त्व के लिए झगडते है । “अथातोमनसश्च" इत्यादि (४ अध्याय ५ ब्राह्मण) ऋग्वेद म इडा को धी, बुद्धि का साधन करने वाली, मनुष्य को चेतना प्रदान करने वाली कहा है। पिछले काल म सम्भवत इडा को पृथ्वी आदि से सम्बद्ध कर दिया गया हो, किन्तु ऋग्वेद ५-५-८ म इडा और सरस्वती के साथ मही का अलग उत्रेय स्पष्ट है । "इडा सरस्वती महो तिस्रो देवीमयोभुव" से मालूम पड़ता है कि मही मे इडा भिन है । इडा यो मेधमराह्निी नाडी भी वहा गया है। अनुमान किया जा सकता है कि बुद्धि का विकास, राज्य स्थापना इत्यादि इडा ये प्रभाव से ही मनु ने रिया । फिर तो इडा आमुख ॥४०९॥