सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/४७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

घ घू परता नाच रहा था अनस्तित्व या ताडव नृत्य, आपण विहीन विद्युतण बने भारताही थे भृत्य । मत्यु सट्टा शीतल निराा ही मालिंगन पाती थो दृष्टि, परम व्याम से भौतिर कण मी घने उहासो यी थी वृष्टि । यामा उजडा' जाता था या वह भीषण जर-मपात, मोर त्र में थापता था प्रग्य Pिा या होना प्रात। १ पास-ना। गुमा पारिन--१.८ (यस्दया १.२८) में मा म मा frat Kग प्रागन हमा है भी म ना यामम॥