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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५००

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"कौन तुम? ससृतिज लनिधि तीर तरगो से फेंकी मणि एक, कर रहे निजन का चुपचाप प्रभा की धारा से अभिषेक ? 'मधुर विश्रात और एकात- जगत का सुलझा हुआ रहस्य, एक तरुणामय सुन्दर मौन और चचल मन का आलस्य" सुना यह मनु ने मधु गुजार मधुकरी का सा जव सानद, किये मुख नीचा कमल समान प्रथम कवि का ज्यो सुन्दर छद, एक झिटका सा लगा सहप, निरखने लग सुटे से, कौन- गा रहा यह सुन्दर सगीत? कुतूहल रह न सका फिर मौन । १ पाण्डुलिपि में-विधुर 'माधुरी अगस्त १९२८ में प्रकाशित अशवा अतिम थद्धा ॥४५५॥