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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५०१

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'और देग्वा वह सुन्दर दृश्य नयन का इद्रजाल अभिराम, कुसुम-वैभव में लता समान चद्रिका से लिपटा घनश्याम । हृदय की अनुकृति वाह्य उदार काया, उन्मुक्त, मधु पवन क्रोडित ज्यो शिशु साल सुशोभित हो सौरभ सयुक्त । एक लम्बी मेषो के चम, मसृण गांधार देश के, नील रोम वाले ढंक रहे थे उसका वपु कात वन रहा था वह कोमल वम | नील परिधान बीच सुकुमार खुल रहा मृदुल अधखुला अग, खिला हो ज्यो बिजली का फूल मेघ-वन वीच गुलाबी रग । आह । वह मुख पश्चिम के व्योम- बीच जब घिरते हो धन श्याम, अरुण रवि मडल उनको भेद दिखाई देता हो छविधाम । १ माधुरी अगस्त १९२८ में इंद्रजाल शीपक से प्रकाशित । प्रसाद वाङ्गमय ॥४५६॥