पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५२५

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जो आक्पण वन हंसती थी रति थी अनादि वासना वही, अव्यक्त प्रकृति उन्मीला के अतर म उसकी चाह रही । हम दोना का अस्तित्व रहा उस आरम्भिक आवत्तन सा, जिससे ससृति का बनता है आकार रूप के नत्तन सा। उस प्रकृति लता के यौवन मे उस पुष्पवती के माधव का, मधु हास हुआ था वह पहला दो स्प मधुर जो ढाल सका।" “वह मूल शक्ति उठ खडी हुई अपने आलस का त्याग किये, परमाणु वाल सब दौड पडे जिसका सुन्दर अनुराग लिये । प्रसाद वागमय ॥४८२॥