पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५३९

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दरगे, ऊंचे शिखर का व्योम चुम्बन व्यस्त, लाटना अति विरण का आर होना अस्त । चलो तो इम कौमुदी म देख आवें आज, प्रति का यह म्वप्न सागन, माधना या जरा ।' पष्टि हमारणा यांना म गिरा अनुगग, गग जा चद्रिका यो उद्धा सुमन पराग । और मता था अतिथि मनु वा पाडार हाथ, पर दानो स्वप्न पय म म्नेह मरल साय । TT मा गतर मुधा में स्नात, गर मान र उत्तरमाण वा रात । या रहा था मदिर भीनी मारी थी गध, पाय पन पिर पडत थे यने मधु अघ । nि: अगाई पहा पाया निमो नमा, को गिरामी मर पर किया। - म यो माना धो भात Tiपा मा परनी या पार पान ।