पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५७५

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विगत विचारों के दम सौकार बने हुए थे मोती मुख मंडल पर अरूण कल्पना उनको रही पिरोती। जूते थे मनु और कटक्ति होती थी वह वेला, सर्ब्रज व्यथा की लहरों सी जा अग्रता थी फैली वह पागल सुख इस जगती का एक वितान तना था।