पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५७४

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-- मादकता, जाग उठो थी तरल वासना मिली रही मनु को कोन वहां आने से भला रोक अब सकता सुले मसण भुज-मूलो से वह आमरण था मिलता, उन्नत वक्षो मे । आलिंगन सुख लहरो सा तिरता। नीचा हो उठता जो धीमे धीमे निश्वासो जोवन का ज्यो ज्वार उठ रहा । हिमकर के हासो में, मे। - जागृत था मौंदय्य यदपि वह सोती । थी रूप चद्रिका म उज्ज्वल थी आज निशा सुकुमारी, - 11 सी नारी। थे ये मासल परमाणु विरण से विद्युत अलको को डोरी मे जीवन कण पण विखराते, उलझे जाते। कम ॥५३५॥