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योलो, एक अचेतनता लाती मी सविनय श्रद्धा "वचा जान यह भाव सृष्टि ने फिर से बायें साली। भेद बुद्धि निमम ममता यो समझ, वची ही होगी, प्रलय पयानिधि पी लहरें भी लोट गयी ही होगी। करेगा। अपने में सब कुछ भर पैस व्यक्ति विकास यह एकात स्वाथ भीपण है अपना नाश करेगा। औरो को हंसते देखो मनु हंसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत पर लो सब को सुखी बनाओ। रचना मूलक सृष्टि यज्ञ यह यज्ञ-पुरुष वा ससूति सेवा भाग हमारा उसे विकसने जो cho को है! प्रसाद वाङ्गमय ॥५४२॥