पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/६६१

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और शत्रु मब, ये कृतघ्न फिर इनका क्या विश्वास करू, प्रतिहिंसा प्रतिशोध दबा कर मन ही मन चुपचाप मह । श्रद्धा के रहते यह सभव नहीं कि कुछ कर पाऊंगा, तो फिर शाति मिलेगी मुझको जहाँ, खोजता जाऊंगा।" . जगे सभी जब नव प्रभात में देखें तो मनु वहा नही, पिता कहा' कह खोज रहा सा वह कुमार अव शात नहीं। इडा आज अपने को सबसे अपराधी है समझ रही, कामायनी मौन वेठी सी अपने मे ही उलझ रही। प्रसाद वाङ्गमय ॥६४०॥