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आदि इन्द हारे सुरेश, रमेम, घनेस गनेसहू शेप न पावत पारे पारे है कोटिक पातकी पुज "कलाघर" ताहि छिनो लिखि तारे तारेन की गिनती सम नाहिं सुजेते तरे प्रभु पापी विचारे चारे चले न विरचिहू के जो दयालु राकर नेकु निहारे ॥ प्रथा कविता.लेवन काल ईसवी सन १९०१ वाम१२ तार