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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/६९५

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"मा मह ामा पर्म मोप: पर पुष्प अंगार गा. गपा हो रहा आT था गरिनो धम पार मा। यर गागरा प्रया गर , गोछ गगा । पाई म्यार या एपणा। अमगय राहट, परामय शि प्रासा महागन पा, सण भर भी विश्राम गरी है प्राण दास है लिया सरपा। भाव गग्य गे गार गामिर सुग यो युग म बल रोहे हिंगा गोनस हारों में ये भरडे अणु टहल रहे हैं। ये भौतिा सदेह पुछ परसे जीवित रहना यहाँ पाढे भाव राष्ट्र के नियम यहाँ पर दण्ड बने है, सर पराह्ते । -मय॥ ६७६॥