पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/७००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

यहा विभाजन बम तुला का अधिकागे की व्याख्या करता, यह निरीह, पर कुछ पाकर ही अपनी ढीली सांसें भरता। उत्तमता इनका निजस्व है अम्बुज वाले सर सा देखो, जीवन - मधु एक्त कर रही उन ममासिया सा बस लखो। यहां शरद की धवल ज्योत्स्ना अधकार को भेद निखरती, यह अनवस्था, युगल मिले से विक्ल व्यवस्था सदा विखरती। देखो वे सब सौम्य बने हैं कि तु सशकित है दोषो से, वे सकेत दभ के चलते ~ चालन मिम परितोपो से । यहा अछूत रहा जीवन रम छूओ मत सचित होने दो, बस इतना ही भाग तुम्हारा तृपा ' मृपा, वचित होने दो। रहस्य ॥ ६८१॥