पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/७२१

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श्रद्धा के मधु अधरो की छोटी छोटी रेखाएं, रागारण किरण बला सी विकसी बन स्मिति लेखाएं। वह कामायनी जगत की मगल कामना अकेली, थी ज्योतिष्मती प्रफुलित मानस तट को वन बेली। वह विश्व चेतना पुलक्ति थी पूण काम की प्रतिमा, जैसे गभीर महाह्रद हो भरा विमल जल महिमा । जिस मुरलो के निस्वन से यह शून्य रागमय होता, वह कामायनी विहंसती अग जग था मुखरित होता। प्रसाद वाङ्गमय । ७००॥